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Kanchan Shukla

Inspirational

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Kanchan Shukla

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मां गंगे ( भीष्म की अंतर्व्यथा

मां गंगे ( भीष्म की अंतर्व्यथा

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हे मां गंगे,

आ जाओ सम्मुख,

हाथ जोड़कर,

नतमस्तक हूं,

विनती करता हूं तुम से,

तुमने मुझको जन्म दिया,

एक नाम दिया था,

देवव्रत,

पितु की इच्छा,

की पूर्ति हेतु,

भीष्म प्रतिज्ञा,

कर डाली,

तब पितु ने,

मुझे भीष्म पुकारा,

इच्छा मृत्यु का दे वरदान,

अस्त्र शस्त्र ,

वा धर्म ज्ञान की

शिक्षा देकर,

मां तुमने मुझको,

सत्य का मार्ग दिखाया था,

पर मैंने तेरी शिक्षा को,

खंड खंड कर डाला है,

भरी सभा में,

अग्निसुता की मर्यादा का,

रक्षण न कर पाया मैं,

चीरहरण इन आंखों ने देखा,

फिर भी शस्त्र,

उठे न मुझसे,

मौन रहा,

कुल की मर्यादा तोड़ी,

जिस कुल में,

नारी की मर्यादा,

का रक्षण,

कुल का मुखिया,

गर न कर पाए,

तब जीवनपर्यंत,

चैन कभी वह न पाए,

तड़पे हर पल,

जल बिन मछली,

मां आ जाओ सम्मुख,

मुझको क्षमा,

मांगनी तुमसे,

तुम पाप नाशनी,

पावन गंगा,

मेरे पापों को कुछ कम कर दो,

मेरा पाप अक्षम्य है माता,

फिर भी क्षमादान,

मुझको दे दो,

मुझको ज्ञात है,

हे माता,

द्रुपद सुता से,

श्रापित होकर,

कुरूवंश नष्ट हो जाएगा,

शरशैय्या पर मैं सोऊंगा,

भीषण होगा नर संहार,

तुम पावन कर देना सबको,

सगर पुत्रों को किया था जैसे,

हे मां गंगे,

हे भागीरथी,

हे पतित पावनी,

मेरी मां ।।



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