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Mr. Akabar Pinjari

Abstract

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Mr. Akabar Pinjari

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माँ (एक बाल मनोविज्ञान)

माँ (एक बाल मनोविज्ञान)

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कैसे बतलाऊं माँ मैं, मन में लगी इस होली को,

कैसे भुलाऊं माँ , मेरे कान में गूंजती तेरी बोली को,

सुबह से लेकर शाम तक न जाने, क्यों तू मन में आती है,

जहां देखता हूं मैं माँ , वहां तेरी तस्वीर लहराती है।


तेरी ममता का आंचल, अभी सुना लगता है,

इस बाज़ारू दुनिया में, सब कुछ, तानों से भूना लगता है,

चल जाते हैं तीर याद के, मैं घायल हो जाता हूं,

रोता रहता हूं दिनभर, बस फरियाद नहीं कर पाता हूं।


अब तो आ जा माँ , अब तेरी याद बहुत सताती है,

सब होकर भी मन पर, दुखों की बदलीं-सी छाती है, 

लफ्ज़ कटारी जैसे लगते है, इन बेपरवाह इंसानों में,

हर वक्त धोखा लगता है, इनकी झूठी मुस्कानों में।


तेरे बगैर माँ कोई विषय चमत्कार नहीं करने वाला है,

मुझ बेबस बालक का, ना अब कोई, बाल-मनोविज्ञान बदलने वाला है,

जो करता है, मस्त करता है, और अब ना ये समझाने वाला है,

अब वह कौन खुदा है? जो मेरी तकदीर बदलने वाला है?



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