माँ अपना आशीष बनाये रखना
माँ अपना आशीष बनाये रखना
तू जानती है माँ
तुझसे बिछड़ के खूब रोता हूँ
भटकता हूँ इधर उधर बस
कहाँ फिर चैन से सोता हूँ ?
तेरी हर उम्मीद पर ही मैं
खरा उतरना चाहता हूँ
बस तेरी इबादत मैं
दिलो- जान से
करना चाहता हूं...
ज़िंदगी छोड़ने का विचार तो
मुझे भी कभी आता है
पर आत्महत्या से भला
कौन तुंझे खुश कर पाता है
तू बस प्रसन्न होती
उस पर मैया
जिसे
लड़ना आता है...
जानता हूँ कायरता
तुझे रास नही आती
जो बस भोग विलास को अपनाएं
तू उनके पास नही आती
तुझे तो
पवित्रता ही भांति है
जो प्रयास करे बिगड़े बच्चे
तो माँ उन्हें
तू ही पावन बनाती है...
माता लीला तेरी निराली है
स्याह कोयले को तू
हीरा बनाती है
दलदल में भी
प्यारे प्यारे
उत्पल खिलाती है...
जिसके मन में बसी हो माँ
वहां माया टिक नही सकती
ऐसा मन रहता है पवित्र सदा
वहां विकारों की ज्वाला
कभी जल नही सकती...
असम्भव जैसा कुछ
है नही आपके लिये
आस का दीपक माता
हमारा भी जलाए रखना..
कभी बुझ न जाए
आपके ये मासूम चिराग
इन्हें सदा
रोशन बनाए रखना...
छोड़ना नही माँ ,साथ हमारा कभी
ऐसी कृपा हम पर बरसाए रखना
खूब करें मानवता की सेवा हम
यही भाव मन मे बसाए रखना..
हे माँ
हम संतानों के आस के मोती को
विश्वास की ज्योति को
सदा ही जलाए रखना
अपना आशीष माता हम पर
जीवन भर बनाएं रखना...