लफ़्ज़ों की लेन देन
लफ़्ज़ों की लेन देन
कई सवालें
नि:शब्दता और चुप्पी के सहारे
एक अतरंगी माहौल के साथ
खुद ब खुद
पैदा हो जाते हैं
जो जिज्ञासा को
मन की उत्सुकता को
उस व्यक्ति के सामने
व्यक्त करने को
हमें प्रवृत्त करते हैं
जिससे हम अन्जान हैं
और उस पल तक अन्जान रहते हैं
जब तक हम उसके साथ
वार्तालाप का एक दाव
न लगा लेते
फिर न जाने कहाँ से
अतीन्द्रिय ज्ञान प्रकट हो जाती हैं
जो हमें यह जताने लगती हैं कि
कहीं न कहीं
उस शक्स का अन्तर्मन भी
उसको तरसा रहा होगा
इक न्यारी वार्तालाप के लिए
क्योंकि जिस तरह
मैं उसके लिए अन्जान हूँ
वो भी मेरे लिए अन्जान हैं
और हम एक दुसरे को
किसी तीसरे की नजरिये से
देखने की कोशिश में जुटे रहते हैं
और वही दुविधा
हमें अलग कर रहा होता हैं,
एक झिझकपन
हम में डाल रहा होता हैं
जो हमें आपस में
चंद लफ़्ज़ों की लेन देन
करने से वंचित कर रहा होता हैं।
