लॉक#अनलॉक
लॉक#अनलॉक
लीजिये की उम्मीदें,
नई जाग गयी हैं.
स्याह रातों को पीली धूप
अंश-अंश पाट गई है.
उठ जाओ मुसाफिर कि
अब डरना नहीं है
मंजिलों पे पहुंचने की
सहर जाग गई है.
है जिंदगी तो मौत से
क्यूँ खौफ ज़दा हैं,
सड़कों पे फिर उम्मीदें
नई जाग गई है.
इस वक्त तो अब
हाथ मिलाना भी गुनाह है,
हर-दिल में बस जाने की
तलब जाग गई है।
