लोक शाहीर
लोक शाहीर
गरीब, वंचित, मजबूर, लाचार,
कौन सुनता है उनकी पुकार ?
कब आये, कब जीये, कब मरे,
दुनिया नहीं रखती कभी इनकी खबर.
अपने नसीब को कोसकर बार- बार,
यूं ही जी लेता है जिंदगी सिमटकर
अशिक्षित, लाचार, शोषित मजदूर दुनिया में बनकर,
जीवन खत्म कर देते रोटी के लिए चंद रुपयों पर.
अन्न भाऊ बने जन- जन के लोक शाहीर,
अपने साहित्य से जगाया मजदूरों का जमिर
मजदूर ना करे श्रम, कौन बने दुनिया में अमीर ?
मजदूरों का हक छिनकर बनते कुछ अमीर
धरा नहीं है शेष नाग के सर पर सवार,
वो है मजदूर के हाथ पर सवार हर बार
मजदूर कर ले अपनी मुठ्ठी बंद पल भर,
तो दुनिया का अर्थचक्र रुक जाये अपने जगह पर
मजदूरों को दिलाया आत्मसम्मान उन्हें जगाकर,
क्यों समझते हो अपने को लाचार और मजबूर ?
दिखाव दुनिया को अपनी एकजुट शक्ति डटकर,
प्रकृति ने हमें भी दिया है श्रम का बेमिसाल हुनर
अन्ना भाऊ खुद ही थे , वंचित और लाचार,
परिस्थितियों को दी मात खुब डटकर
बने वंचित जन-जागृति के मसीहा अपने समय पर,
अपने साहित्य में समाज का सही आईना दिखाकर
कथा, कांदबरी, लोक्नाट्य, लावणी,
पोवाडे, प्रवास वर्णन और गीत,
उनके रचे मराठी साहित्य के विविध प्रकार.
बहुजन मांतक समाज के नेता होने पर,
मनुवादी साहित्यकारों ने किया दरकिनार
जागतिक साहित्य परिषद ने दिया साहित्य पुरस्कार,
रूस और पॅरिस में उन्हें सम्मान से बुलाकर
अपने साहित्य से की बहुजन जागृति जीवन भर,
‘फकिरा को किया समर्पित भीम को श्रद्धांजलि देकर.
अना भाऊ साठे का साहित्य है आम जनता की तस्वीर,
फुले, शाहू, मार्क्स, गॉर्की, एंगल्स, आंबेडकर,
विचारधाराओं का भाऊ के साहित्य पर असर,
उसका नहीं कोई तोड़ इस धरती पर,
देशी-विदेशी भाषा में उपलब्ध साहित्य विश्व भर