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VIMAL KANT SHARMA

Inspirational

4  

VIMAL KANT SHARMA

Inspirational

लीलाधर की लीला

लीलाधर की लीला

13 mins
279


भजन

सभी मनोरथ पूरे करते हैं सबके भगवान I

मत कर तू अपमान प्रभु का रख ले उसका मान  I I


1 निर्धन के भगवान बसें उसके दिल में I

२ पैसे वालों के मंदिर और मस्जिद में I I

३ उसको अपने मन में बसा ले I

४ सच्चा ध्यान तो ज़रा लगा ले I I

५ आँखें खोल ज़रा तू मन की I

६ होता क्यूं हैरान I I

 

 सभी मनोरथ पूरे करते हैं सबके भगवान I

मत कर तू अपमान प्रभु का रख ले उसका मान  I I

१ कभी तू मंदिर मस्जिद जाए I

२ धूप दीप नैवेद्य चढ़ाए I I

३ कभी तू व्रत त्यौहार करे और I

४ कभी तू भंडारा करवाए  I I

५ अपने अन्दर ढूंढ उसे I

६ क्यूं भटक रहा इंसान I I

 

सभी मनोरथ पूरे करते हैं सबके भगवान I

मत कर तू अपमान प्रभु का रख ले उसका मान  I I

१ सुबह सवेरे जाप करे और I

२ सारे दिन तू पाप करे I

३ झूठ और धोखा जीवन सारा I

४ फिर क्यूं पश्चाताप करे I

५ देख नहीं सकता तू मन से I

६ रटता रहता नाम I

 

 सभी मनोरथ पूरे करते हैं सबके भगवान I

मत कर तू अपमान प्रभु का रख ले उसका मान  I I

१ धन के लोभ में पड़ा हुआ तू I

२ संग कहाँ ले जायेगा  I I

३ खाली हाथ ही तू आया है I

४ खाली हाथ ही जाएगा I I

५ दो हाथों को जोड़ के उसके I

६ चरणों का कर ध्यान I I


सभी मनोरथ पूरे करते हैं सबके भगवान I

मत कर तू अपमान प्रभु का रख ले उसका मान  I I

१ तेरे बेटा-बेटी बहने I

२ तेरे लिए नहीं बंदे I I I

३अपने सारे रिश्ते नाते I

४ प्रभु के रंग में तू रंग दे I I

५ अपने सब संसार के बंधन I

६ उस-से ही तू जान I I


सभी मनोरथ पूरे करते हैं सबके भगवान I

मत कर तू अपमान प्रभु का रख ले उसका मान  I I

१ जो भी द्रष्टि में आये I

२ तुम सब सृष्टि उसकी जानो I I

३ जितनी घटना घटती हैं I

४ तुम सब घटना उसकी मानो I I

५ सब-कुछ उसका उस-से सब-कुछ I

६ सब-से उत्तम ज्ञान I I

सभी मनोरथ पूरे करते हैं सबके भगवान् I

मत कर तू अपमान प्रभु का रख ले उसका मान  I I

 

 “मेरी लेखनी मेरी पंक्तियां”

 सुनो साथियों सुनो ध्यान से I

मैं इक कथा सुनाता हूँ I I

भारत के वीरों की गाथा I

मैं फिर से दोहराता हूँ I I

उस भारत की गाथा है जो I

विश्व का गुरु कहाता है I I

उस भारत की गाथा है जो I

वेद से जाना जाता है I I

ऋषियों के आगे जब राष्ट्र का I

राजा शीश झुकाता था I

उनके ही निर्देशों पर वह I

अपना राज चलाता था I I

घर-घर में तब यज्ञ की अग्नि I

की सुगंध थी महकाती I I

सत्य के आदर्शों पर चलने I

की शिक्षा थी दी जाती I I

इसी राष्ट्र में रावण और I

दुर्योधन जैसे दुष्ट हुए I I

उनके शासन काल में जनता I

को अमानवी कष्ट हुए I I

जनता उनके अत्याचारों  I

से त्राहि कर जाती थी I I

उनके कष्ट को कौन सुने I

शासक से वो घबराती थी I I

सभी सिपाही शासक के I

जनता में लूट मचाते थे I I

लूट के धन को एकत्रित कर I

जनता को तड़फाते थे I I

चहूं ओर थी बड़ी निराशा I

आशा नजर न आती थी I I

तब भारत माता की छाती I

देख-देख फट जाती थी I I

ऐसे में श्री राम और कृष्ण से I

वीर हुए बड़े बल-शाली I I

उन दोनों के नाश कि थी I

दोनों ने प्रतिज्ञा कर डाली I I

अपने घर को त्याग के वो I

जंगल दर जंगल भटक चले I I

कष्टों पर थे कष्ट बड़े I

पर अपने प्रण से नहीं हिले I I

एक समय का भोजन करके I

कितने दिवस बिताये थे I I

काँटों पर चलकर भी अपने I

जीवन में मुस्काये थे I I

गुरूओं से शिक्षा ले कर था I

वैदिक ज्ञान लिया सच्चा I I

इसी राष्ट्र के आचार्यों से I

नीति ज्ञान लिया अच्छा I I

अस्त्र शस्त्र की विद्या में I

उनका नहीं सानी पता था I I

दूर-दूर तक ख्याति थी I

दानव उनसे घबराता था I I

जन-जन को एकत्रित कर तब I

सेना बड़ी बनाई थी I I

उस शक्ति को देख दुष्ट को I

मृत्यु निकट दिखाई दी I I

घमासान तब युद्ध हुआ था I

मुंडों पर थे मुंड कटे I I

पर दानव की सेना के भी I

झुंडों पर थे झुण्ड बड़े I I

एक ओर थे सत्य के रक्षक I

एक ओर भक्षक भरी I I

चहूं ओर सागर सी सेना I

रक्षक अस्त्र शस्त्र धारी I I

बड़े निपुण और कुशल कला में I

वे झंकार मचाते थे I I

मृत्यु को ले चले हथेली I

पर वे लड़ने आते थे I I

उनकी इक हुंकार से I

धरती अम्बर कांप गया सारा I I

उस कम्पन की सिरहन से तब I

गूँज उठा जन-गण प्यारा I I

बड़े-बड़े योद्धा उस युद्ध में I

कूद पड़े सेना लेकर I I

खूब निभाया कर्तव्य I

प्राणों की आहुति देकर I I

प्राण जाये पर वचन नहीं I

जाने पाए संसार से I I

तेज प्रभु का ऐसा था I

दुर्दांत मिटा संसार से I I

उस दुर्दांत के मिटते ही I

जीवन का नव निर्माण हुआ I I

प्रभु लीला तब देख जगत को I

धर्म का फिर से ज्ञान हुआ I I

ऐसा सुख और ऐसी शांति I

जीवन में नहीं आई थी I I

ऐसी वायु नहीं कभी भी I

धरती पर चल पाई थी I I

सभी को भोजन धरती पर तब I

शान्ति से मिल जाता था I I

भोला-पन ऐसा आया I

नहीं कोई किसी को सताता था I I

सब प्रसन्न और प्रभु की लीला I

का आनन्द उठाते थे I I

तभी तोह भारत राष्ट्र के योद्धा I

वीर बड़े कहलाते थे I I

 

“मेरी लेखनी मेरी पंक्तियां”

पढ़ना लिखना है बेकार जी V I

पढ़ना लिखना है बेकार I I

पढ़ना लिखना है बेकार जी I

पढ़ना लिखना है बेकार I I

पैसा फेंक के डिग्री ले लो I

मार्कशीट तो बिकती है II

शिक्षा का स्तर इतना गिर गया I

शिक्षा यहाँ पे बिकती है I I

भारत तेरी यही दुर्दशा I

मुझे हर जगह दिखती है I I

भ्रष्ट यहाँ पर यूनिवर्सिटी I

सरस्वती नहीं दिखती है I I

पढ़ लिख कर क्या करोगे बच्चों I

पढ़ना लिखना है बेकार I I

बाप पे तेरे नहीं है पैसा I

फिर क्यूं पढ़ने की दरकार I I

बी.टेक करना बी.एड करना I

चाहे पी.एच.डी. करना I I

पैसा फेंको मिलेगा सबकुछ I

दे के परीक्षा क्या करना I I

नौकरी भी पैसे से मिलेगी I

बस पैसे की है दरकार I I

पैसे ही से टीचर सारे I

पैसे ही से है सरकार I I

पढ़ना लिखना है बेकार जी I

पढ़ना लिखना है बेकार I I

पढ़ना लिखना है बेकार जी I

पढ़ना लिखना है बेकार I I

अब ज्ञानी कि पूछ नहीं है I

ज्ञानी है सबसे बेकार I I

ज्ञानी के अब अन्न भी नहीं I

अज्ञानी के घर भण्डार I I

न्यायालय में न्याय नहीं है I

और सिपाही साथ नहीं I I

अब मंदिर में नहीं है पूजा I

धर्म कि कोई बात नहीं I I

आज गुरु के शिष्य नहीं है I

शिक्षा की कोई बात नहीं I I

शिक्षा बेचने निकले शिक्षक I

निष्ठा की कोई बात नहीं I I

लालच के मारे हैं सारे I

अब निस्वार्थ की बात नहीं I I

शासन में तो भ्रष्ट भरे हैं I

अब शासक की बात नहीं I I

जनता से नेता का रिश्ता I

अब जनता की बात नहीं I I

राजनीति में नहीं है नेता I

अब नेता कि बात नहीं I I

भाई बहिन का रिश्ता टूटा I

भाई बहिन की बात नहीं I I

अब रिश्तों कि बली चढ़ रही I

संबंधों कि बात नहीं I I

सच्चाई का कत्ल हो गया I

सच्चाई कि बात नहीं I I

अच्छाई बे मौत मर रही I

अच्छाई कि बात नहीं I I

अब तो अंग्रेजी चलती है I

अंग्रेजों कि बात नहीं I I

अब भाषा भी नहीं है अपनी I

अब भाषा कि बात नहीं I I

भारत कि सीमा है विवादित I

अब सीमा कि बात नहीं I I

भारत कि पहचान भी भूले I

अब भारत कि बात नहीं I I

भारत तेरी भरत संस्कृति I

हमको गर्वित करती है VV I I

धर्म तेरे कण-कण में व्याप्त है I

मुझे सत्य से भारती है I I

अपने देश कि गौरव गाथा I

हर-युग में दोहराऊंगा I I

भारत पर अभिमान है मुझको I

जनम यहीं पर पाऊँगा I I

मैं इस माटी का पुतला हूँ I

माटी में मिल जाऊँगा I I

है पवित्र गंगा जल पावन I

मैं अमृत बन जाऊँगा I I

खंड हिमों का खड़ा हिमालय I

आसमान छू जाऊँगा I I

भारत का अदना प्राणी हूँ I

भारत पर मिट जाऊँगा I I

भारत कि पहचान है भारत I

विश्व गुरु कहलाऊंगा I I

जब ज्ञानी की पूछ बढ़ेगी I

तभी चैन मैं पाऊंगा I I

 

“मेरी लेखनी मेरी पंक्तियां”

 खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

इस विश्वास को मन में धारण I

करके कदम बढ़ाना है I I

लोगों की आँखों के आगे I

कत्ल किसी का हो जाए I I

बहिन किसी की उठ जाए या I

भाई किसी का सो जाए I I

हमने आपस के द्वेषों को I

दिल से दूर हटाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

आज प्रशासन भोली भाली I

जनता को धमकाता है I I

किसी के दुःख को साझा करने I

से मानव कतराता है I I

आज हमें फिर जनता के I

मन में विश्वास जगाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

सरकारी अधिकारी ही I

जनता की जेबें काट रहे I I

रिश्वत के पैसे शराब I

और जूवे वाले बाँट रहे I I

रिश्वत खोरों की सत्ता को I

जड़ से हमें हटाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

हवस कि अन्धी दौड़ में हम I

अपनी पहचान भी भूल गए I I

गोरों ने अपमान किया हम I

वह अपमान भी भूल गए I I

अंग्रेजी भाषा का घर-घर I

बहिष्कार करवाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

कितनी माँ बहनों की इज्जत I

बटवारे ने लूटी थी I I

कितने ही लोगों की किस्मत I

बेघर हो कर फूटी थी I I

लुप्त हो रही राष्ट्र संस्कृति I

को फिर हमें बचाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

आज यहाँ पर उग्रवाद ने I

फिर से कदम जमाया है I I

देश में कितनी निर्मम हत्याओं I

का ढेर लगाया है I I

जो निर्दोषों के खूनी हैं I

उनको दंड दिलाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

गली-गली में देश के दुश्मन I

आजादी से घूम रहे I I

सरकारी ताकत के साथ वे I

भारत को ही भून रहे I I

अब जय-चंदों को चौराहों I

पर फांसी लटकाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

भारत देश की धरती है I

वीरों की और बलिदानों की I I

ऋषियों की विद्वानों की और I

हष्ट-पुष्ट बलवानों की I I

इस पहचान को हमने फिर से I

घर -घर तक पहुँचाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

कहाँ गये वे भीम सरीखे I

कहाँ गये अर्जुन के बाण I I

एक द्रौपदी चीर हरण से I

कौरव राज का मिटा निशान I I

कृष्ण के हाथों आज कंस से I

राजा को मरवाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

अभी हमारे हर सीने में I

वीरों का लहू बहता है I I

आज हमारा बाहू बल हमें I

बार - बार यह कहता है I I

हमने अपने भारत में फिर I

कृष्ण का शंख बजाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

उठो जवानों बढ़ो देश की I

खातिर कुछ कर जायेंगे I I

देश की विषम समस्याओं को I

मिल-जुलकर सुलझाएंगे I I

इस विश्वास को मन में धारण I

करके कदम बढ़ाना है I I

खंड-खंड भारत को फिर से I

भारत एक बनाना है I I

 

“मेरी लेखनी मेरी पंक्तियां”

 हिंदी प्यारी लागे हिंदी की छवि निराली है I

भाषाओं में भाषा उत्तम हिंदी भोली भली है I I

उस वतन की बोली हिंदी जिसमें गोर आये थे I

गुलामी और हिंदी की सौत अपने साथ लाये थे I I

हिंदी को बचाने को सभी ने गीत गए थे I

भूल गए आज तब प्राण तक गँवाए थे I I

आज सौत अपनी हुई हिन्दी तो परायी है I

आज का मानव तो मुझे लागे एक कसाई है I I

हिंदी प्यारी लागे हिंदी की छवि निराली है I

भाषाओं में भाषा उत्तम हिंदी भोली भली है I I

बच्चे विद्यालय को जायें वापस इसको भूल के आयें I

अंग्रेजी में खेलें कूदें अंग्रेजी में खाना खाएं I I

डिग्रियों को ही लें तो बी.ए.और बी.एस.सी कहते हैं I

माध्यम हिंदी हो पर शीर्षक अंग्रेजी के रहते हैं I I

कैसा यह विकास कैसा आत्म निर्भर है यह देश I

गुरुओं ने ही शिक्षा का बदल दिया पूरा भेष I I

हिंदी प्यारी लागे हिंदी की छवि निराली है I

भाषाओं में भाषा उत्तम हिंदी भोली भली है I I

 

 “मेरी लेखनी मेरी पंक्तियाँ”

 हो जिस्म जवान और तेज कदम I

मजबूत कंधे चौड़ी छाती I I

आवाज बुलंद आवाज हैं हम I

क्यूं लूटने दें मानव जाती I I

वेह गोली जहां से आती है         I

जिस जान को ले कर जाती है I I

थी बहिन मेरी मेरा भाई I

हाँ कैसी अंधियारी छाईI I

बिन मौत मरा आवाज नहीं I

नहीं यह उसका स्वराज्य नहीं I I

धिक्कार इसे कड़ी पीढ़ी युवा I

लज्जा का जिसे आंचल न छुआ I I

परदेस नहीं यह मेरा है I

वह आग लगी घर तेरा है I I

आवाज उठा पछतायेगा I

गर भेदभाव बढ़ जायेगा I I

आतंकित हूँ इस बात से मैं I

यहाँ गृह युद्ध छिड़ जायेगा I I

खड़े वीर बने भ्रष्टाचारी I

यह काम नहीं इतना भारी I I

बस पहल की किरण दिखानी है I

फिर जनता वाही पुरानी है I I

है देश वही जिसके बेटे I

नेहरु सुभाष और गाँधी थे I

फिर है लड़ाई अन्याय से I I

आवाज उठेगी दिशाओं से I

नहीं लुटने देंगे मानवता I I

नहीं सहेंगे अब यह बर्बरता I

अधिकार नहीं हम छोड़ेंगे I I

चल रही विधा को मोड़ेंगेI

जो हमसे आ टकराएगा I

क़दमों में रौंदा जाएगा I I

हमको प्यारा है अपना वतन I

सह लेंगे कैसे अपना पतन I I

हो जिस्म जवान और तेज कदम I

मजबूत कंधे चौड़ी छाती I I

आवाज बुलंद आवाज हैं हम I

क्यूं लूटने दें मानव जाती I I

 

  “मेरी लेखनी मेरी पंक्तियां”

 न कहो यह जिन्दगी तुम्हारी नहीं है I

तुम्हारी न सही बेचारी नहीं है I I

इस जिन्दगी से पैसे का खेल न खेलो I

इस जिन्दगी से पैसा नहीं ख़ुशी उधार ले लो I I

ग़मों को भूल कर जब जियोगे जिन्दगी I

अपने नहीं दूसरे के लिए जियोगे जिन्दगी I I

तो कहोगे फिर तुम भी यही है जिन्दगी I

यह हमारी नहीं सिर्फ तुम्हारी है जिन्दगी I I

जीते नहीं हम इसे जीती है हमें यह I

न यह हमारी जिनगी है न तुम्हारी जिन्दगी I I

हम सब की एक ही है बेचारी जिन्दगी I

हम सब की एक ही है बेचारी जिन्दगी I I

 

 “मेरी लेखनी मेरी पंक्तियां”

 यह दिल एक ऐसा पंछी है I

जब चाह जहां उड़ जाता है I I

ssकभी इस डाली पर बैठा है I

कभी उस डाली पर बैठा है I I

कह इस दिल से आराम करे I

न खुद को यूं परेशान करे I I

उद्देश्य बिना क्यूं उड़ता है I

कहीं राह बीच गिर जाएगा I I

कई ख्वाब देखे इसने I

अपने ख़्वाबों को भूल गया I I

सपनों में खो कर यारों ये I

अपने जीवन से डोल गया I I

जो मान गया आत्मा की बात I

वो सत्यवादी कहलाता है I I

अब भी संभाल लो इस दिल को I

जब जहाँ चाह उड़ जाता है I I

यह दिल एक ऐसा पंछी है I

जब चाह जहां उड़ जाता है I I

 

 “मेरी लेखनी मेरी पंक्तियां”

 ये दुनिया ऐसे ही चलती है I

यह ये दुनिया ऐसे ही चलती है I I

कहीं अन्धेरा कहीं उजारा I

कहीं पे सूखा कहीं पे धाराss I I

कहीं शहर है कहीं गाँव है I

 कहीं धूप है कहीं छाँव है I I

कहीं पे बंजर धरती खारी I

कहीं फसल की है हरियाली I I

कहीं गरीबों की बस्ती है I

कहीं विलासिता भी सस्ती है I I

भेद भाव यह किया है किसने I

भंवर सर्जन यह किया है जिसने I

इस संसार की जीवन ज्योति I

ऐसे ही जलती है I I

यह ये दुनिया ऐसे ही चलती है I

यह ये दुनिया ऐसे ही चलती है I I

कहीं बेबसी में भी आशा I

कहीं पे सुख के साथ निराशा I I

कहीं पे सागर में मोती हैं I

कहीं अंधेरे में ज्योति है I I

कहीं पे हंसता बचपन प्यारा I

कहीं वृद्ध है अनुभव सारा I I

जगह जगह मेले लगते हैं I

पढ़े लिखों को ही ठगते हैं I I

फैशन की कहीं मार पड़ी है I

कहीं सादगी राह कड़ी है I I

झूठ को दुनिया अपनाती है I

सच से क्यूं डरती है I I

यह ये दुनिया ऐसे ही चलती है I

यह ये दुनिया ऐसे ही चलती है I I

इस धरती की छटा है न्यारी I

ग्रीष्म ऋतु में बरखा प्यारी I I

सर्दी में जब धूप खिले तो I

सबके तन को लगती प्यारी I I

कहीं पे पर्वत कहीं पे खाई I

सभी जगह हरियाली छाई I I

कहीं पे सुंदर बाग़ बगीचे I

कहीं खेत को गंगा सींचे I I

धड्रक-धड्रक जीवन ये गाता I

भारत को यह स्वर्ग बनाता I I

दौड़ रही जीवन की गाड़ी I

ऐसे ही चलती है I I

यह ये दुनिया ऐसे ही चलती है I

यह ये दुनिया ऐसे ही चलती है I I

 

 “मेरी लेखनी मेरी पंक्तियां”

हाँ ये शहर है इसमें परिवार रहते हैं

उस परिवार के सदस्य

अपने आस पड़ोस से अनभिज्ञ

किसी अनजान स्थान पर

किसी व्यवसायी के साथ

के उस होटल में

हाथों में जाम उठा 

रिश्वत का बाज़ार गर्म कर रहे हैं

ये ऐसे अकेले नहीं हैं

ये शहर है बहुत परिवार हैं यहाँ 

हाँ ये शहर है इसमें पक्की सड़कें हैं

किनारे से बड़ा मैदान खुलता है

भीड़ जमा है इंसान खड़े हैं

एक आवाज आ रही है

वही पुरानी जानी पहचानी

वादों की इरादों की उसकी

देश की तरफ से

कहीं से पत्थर आया पत्थरों की बाढ़ I I

 


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