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VIMAL KANT SHARMA

Others

4.7  

VIMAL KANT SHARMA

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सत्य अटल है! शरीर साधनl सीरीज

सत्य अटल है! शरीर साधनl सीरीज

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 “मेरी लेखनी मेरी पंक्तियां”

दुष्टता व अन्याय का विरोध व समाज में शान्ति व सुख के लिये भारत के वीरों ने अनेक संघर्ष किये व जगत को धर्म का संदेश दिया l मर्यादाओं का पालन करना भी सिखाया और पापियों व दुराचारियों का नाश करने की प्रेरणा विश्व को दी l

प्रभु को स्वयं संसार के कल्याण के लिये हस्तक्षेप करना पड़ा l

भारत की महानता शब्दों में नहीं समा सकती शब्द कम पड़ जायेंगे और भारत भूमि युगों युगों से संसार को संदेश देती रही है व देती रहेगी l

 

“लीलाधर की लीला”

 

सुनो साथियों सुनो ध्यान से I

मैं इक कथा सुनाता हूँ I I

भारत के वीरों की गाथा I

मैं फिर से दोहराता हूँ I I

उस भारत की गाथा है जो I

विश्व का गुरु कहाता है I I

उस भारत की गाथा है जो I

वेद से जाना जाता है I I

ऋषियों के आगे जब राष्ट्र का I

राजा शीश झुकाता था I

उनके ही निर्देशों पर वह I

अपना राज चलाता था I I

घर-घर में तब यज्ञ की अग्नि I

की सुगंध थी महकाती I I

सत्य के आदर्शों पर चलने I

की शिक्षा थी दी जाती I I

इसी राष्ट्र में रावण और I

दुर्योधन जैसे दुष्ट हुए I I

उनके शासन काल में जनता I

को अमानवी कष्ट हुए I I

जनता उनके अत्याचारों  I

से त्राहि कर जाती थी I I

उनके कष्ट को कौन सुने I

शासक से वो घबराती थी I I

सभी सिपाही शासक के I

जनता में लूट मचाते थे I I

लूट के धन को एकत्रित कर I

जनता को तड़फाते थे I I

चहूं ओर थी बड़ी निराशा I

आशा नजर न आती थी I I

तब भारत माता की छाती I

देख-देख फट जाती थी I I

ऐसे में श्री राम और कृष्ण से I

वीर हुए बड़े बल-शाली I I

उन दोनों के नाश कि थी I

दोनों ने प्रतिज्ञा कर डाली I I

अपने घर को त्याग के वो I

जंगल दर जंगल भटक चले I I

कष्टों पर थे कष्ट बड़े I

पर अपने प्रण से नहीं हिले I I

एक समय का भोजन करके I

कितने दिवस बिताये थे I I

काँटों पर चलकर भी अपने I

जीवन में मुस्काये थे I I

गुरुओं से शिक्षा ले कर था I

वैदिक ज्ञान लिया सच्चा I I

इसी राष्ट्र के आचार्यों से I

नीति ज्ञान लिया अच्छा I I

अस्त्र शस्त्र की विद्या में I

उनका नहीं सानी पाता था I I

दूर-दूर तक ख्याति थी I

दानव उनसे घबराता था I I

जन-जन को एकत्रित कर तब I

सेना बड़ी बनाई थी I I

उस शक्ति को देख दुष्ट को I

मृत्यु निकट दिखाई दी I I

घमासान तब युद्ध हुआ था I

मुंडों पर थे मुंड कटे I I

पर दानव की सेना के भी I

झुंडों पर थे झुण्ड बड़े I I

एक ओर थे सत्य के रक्षक I

एक ओर भक्षक भरी I I

चहूं ओर सागर सी सेना I

रक्षक अस्त्र शस्त्र धारी I I

बड़े निपुण और कुशल कला में I

वे झंकार मचाते थे I I

मृत्यु को ले चले हथेली I

पर वे लड़ने आते थे I I

उनकी इक हुंकार से I

धरती अम्बर कांप गया सारा I I

उस कम्पन की सिरहन से तब I

गूँज उठा जन-गण प्यारा I I

बड़े-बड़े योद्धा उस युद्ध में I

कूद पड़े सेना लेकर I I

खूब निभाया कर्तव्य I

प्राणों की आहुति देकर I I

प्राण जाये पर वचन नहीं I

जाने पाए संसार से I I

तेज प्रभु का ऐसा था I

दुर्दांत मिटा संसार से I I

उस दुर्दांत के मिटते ही I

जीवन का नव निर्माण हुआ I I

प्रभु लीला तब देख जगत को I

धर्म का फिर से ज्ञान हुआ I I

ऐसा सुख और ऐसी शांति I

जीवन में नहीं आई थी I I

ऐसी वायु नहीं कभी भी I

धरती पर चल पाई थी I I

सभी को भोजन धरती पर तब I

शान्ति से मिल जाता था I I

भोला-पन ऐसा आया I

नहीं कोई किसी को सताता था I I

सब प्रसन्न और प्रभु की लीला I

का आनन्द उठाते थे I I

तभी तो भारत राष्ट्र के योद्धा I

वीर बड़े कहलाते थे I I

 


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