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डॉ. रंजना वर्मा

Abstract Inspirational

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डॉ. रंजना वर्मा

Abstract Inspirational

लौट कर फिर बहार आएगी

लौट कर फिर बहार आएगी

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बीत जायेगा यह समय यारों

लौट कर फिर बहार आयेगी ।

फिर से झूले पड़ेंगे बागों में

फिर कली खिले मुस्कुरायेगी ।।

फिर वही दिल और दिल्लगी होगी,

फिर वही दिल से दिल लगी होगी ।

अश्रु आँखों में फिर न आयेंगे

     हँसी अधरों पे खिलखिलायेगी ।

         लौट कर फिर बहार आयेगी ।।


फिर न सूनी रहेंगी ये गलियाँ

फिर न साँसें खरीदनी होंगी ।

फिर अँधेरे मिटेंगे राहों के

हर तरफ़ सिर्फ़ रौशनी होगी ।

फिर वो सपनों का दौर लौटेगा,

फिर वो अपनों का दौर लौटेगा ।

फिर से महफ़िल जमेगी यारों की

     धूप रिश्तों की गुनगुनायेगी ।

         लौट कर फिर बहार आयेगी ।।


आशियाना न छोड़ घबरा कर

ये न सोचो कि कहीं दूर चलें,

आज रोज़ी गयी अगर तो क्या

फिर मिलेगी न हो मजबूर चलें ।

हो जहाँ पर वही बसेरा है,

जब खुले नींद तब सबेरा है ।

झूम कर फिर घटाएँ बरसेंगी

     राह बिजली हमें दिखायेंगी ।

         लौट कर फिर बहार आयेगी ।।


फिर ठहाके औ कहकहे होंगे

फिर वो जलवे वो वलवले होंगे,

पाँव थिरकेंगे गीत की धुन पर

प्यार के फिर वो सिलसिले होंगे ।

ये तो बस मोड़ ज़िंदगी का है,

ये समय रब की बन्दगी का है ।

झाँक जायेगी हँसी आँखों में

     फिर खुशी द्वार खटखटायेगी ।

         लौट कर फिर बहार आयेगी ।।


आज मिलने से डर रहे हो मगर

कल उसे फिर गले लगा लेना,

बात करते रहो सभी से अभी

वक़्त बदलेगा तब बुला लेना ।

चार दिन की ये परेशानी है,

अपनी हिम्मत वही पुरानी है ।

ये मुसीबत भी टलेगी इक दिन

     जीस्त फिर राह नयी पायेगी ।

         लौट कर फिर बहार आयेगी ।।



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