लौह-खग: हवाई जहाज
लौह-खग: हवाई जहाज
दूर गगन में देखो लौह खगों को,
यह है कृत्रिमता की पराकाष्ठा,
परिलक्षित करती ये मानव के,
नित उन्नत होने की आकांक्षा।
करके अभिव्यक्त ये मानव मन,
चूमते गगन को कर चीत्कार,
लांघ के सारे नदियां पर्वत वन,
पहुंचाते पल में सात समुन्दर पार।
देते चुनौती ईश्वर को भी,
तूने है क्या ये सृष्टि रची,
जो करता है तू वह तो,
कर सकता है मानव भी।
पर इस अहंतुष्टि में,
मनुज भूला यह एहसास,
ईश्वर के खग हैं स्वच्छंद स्व-वश,
पर लौह-खग तो है परतंत्र, पर-वश और बिन एहसास।