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Ravi Purohit

Abstract

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Ravi Purohit

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लाल बत्तियों के शहर में

लाल बत्तियों के शहर में

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मन के गुलाबी रूमाल पर

छिड़की नेह-सुगंध और

प्रीत के कसीदे से उकेरा

तेरा नाम

यादों की गोटा-पत्ती से

संभाले

नाजुक पीकु के महीन धागे,


वक्त -बेवक्त

घुल-मिल जाती है

तुम्हारी पुष्प-छवि

रूमाल की रंगत में !


लाज से दुहरी होती

काया का मान

पहुँच जाता है गालों तक

सकुचाता-शर्माता है खुद-बेखुद

और बस जाती है खुशबू


तेरी प्रीत की

रोम-रोम में

जैसे मेरे रूप के

सादे आँगन वाले पोत पर

सुनहरी धागों का

कसीदा किया हो

तेरे इस रजनीगंधा रूप से


हो कर रूबरू तुझसे

मैं हो जाता हूं गुलाब

किसी चन्दन वन का

जैसे लाल बत्तियों के शहर में

अचानक से जल उठी हो

संवेदना की कोई हरी बत्ती


और तब मैं

बन जाता हूं

एक भरा-पूरा इंसान

प्रीत के राजमार्ग का !


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