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Dheerja Sharma

Abstract

4.8  

Dheerja Sharma

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क्यूँ

क्यूँ

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अरे पगले, क्यों बाहर घूमते हो

बेवजह मौत का मुख चूमते हो

बड़ी ज़हरीली हवा है बाहर

क्यों इसको पीकर झूमते हो ?


आसमां कितना धुला धुला है

धरती माँ को साँस मिला है

घर की खिड़की से सब देखो

खुशकिस्मत हो जीवन मिला है !


ये समय घर मे ही बिता लो

अपनों से कुछ प्यार जता लो

अपनी सेहत को भी संभालो

रात दिन व्हाट्सएप न खंगालो।


कुछ रूठों को आज मना लो

उधड़े रिश्तों को सिल डालो

आभासी दुनिया को छोड़ो

सच की राह पे कदम बढ़ा लो।


ईश्वर के घर बंद पड़े हैं

बाज़ारों में ताले जड़े हैं।

लेकिन कुछ तेरे जैसे ही

खाक गली खाने को अड़े हैं।


अपना घर भी बहुत है प्यारा

अपनों का साथ,बड़ा है न्यारा

ये कोरोना तो बड़ा आवारा

क्यों तुम इसका संग ढूंढते हो ?


बेवजह मौत का मुख चूमते हो

अरे पागल, क्यों बाहर घूमते हो।


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