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Amitosh Sharma

Inspirational

4.5  

Amitosh Sharma

Inspirational

क्युं?'बड़ा हो गया हुँ मैं'

क्युं?'बड़ा हो गया हुँ मैं'

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अब तो मानो बरसों बीत गए

उस बेपाक़ हँसी को,

गए वो दिन जब किलकारी मारकर

पागलों कि तरह कभी हँसा करता था मैं,

अब परिपक्व हो गया मैं,

क्योंकि अब बड़ा हो गया हूँ मैं।


ज़िम्मेदारियों और बेरोजगारी के बीच

के फासले बढ़ते गए,

और ग़मों का रेगिस्तान बनता गया,

फ़िर क्या खुशियों ने ग़म को देख मुँह मोड़ लिया,

और पलट कर युं चला मानो

दूरियां बस अनंत छुने को है।


अब तो मन के अंधकार में बस

खामोशियों कि किलकारी गुंजा करती है।

सोचता हूँ कि क्युं बड़ा हो गया हूँ मैं,

कहाँ गए वो बेवज़ह हँसी वाले दिन,

बड़े होने कि ऐसी सज़ा,

परिपक्वता की ऐसी परिभाषा,

वाह! ऐ ज़िन्दगी, क्या खुब खेला,


खुशियों के समंदर में गोते मारने वाले को,

ग़मो के शैलाब में डुबो कर चुप कर दिया,

क्या खुब खेला,

उफ़ ! ये तेरे अनोखे खेल,

क्या खूब खेल खेला।


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