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Chandra Prabha

Action Inspirational

3.8  

Chandra Prabha

Action Inspirational

क्यों तुम मौन

क्यों तुम मौन

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कितना और जलोगी तुम,

कितना और सहोगी तुम।

क्या तुममें सम्मान नहीं है,

जरा भी गौरव का भान नहीं है।


पति के घर में जाते ही,

माँ बनना तुम्हारी नियति है।

बेटा पैदा नहीं करने पर,

मरना तुम्हारी नियति है।


बेटी गर्भ में मारी जाती है,

जीती भी अपमान पाती है।

पतिगृह में दुत्कारी जाती है,

दहेज न लाने पर सताई जाती है।


अब भी तुम मौन हो,

क्यों तुम चुप हो?

अब भी विद्रोह क्यों नहीं,

तुम पाषाणी तो नहीं।


क्यों तुम लाचार सहो,

कुछ समझ न पाती हो।

कुछ कर न पाती हो,

अपने को हीन पाती हो।


चेतना तुम्हरी कुन्द हुई,

बुद्धि तुम्हारी मन्द हुई।

शिक्षा भी पास नहीं,

दुर्बल मन में आस नहीं।


तन के बल पर जीती हो,

नर की दया पर रहती हो।

क्या तुममें अभिमान न

हीं,

क्या तुममें निज का मान नहीं।


क्यों तुम इतनी लाचार हो,

बोलो नारी बोलो।

सृजन तुम्हारा बन्धन है,

तो क्यों सृजन स्वीकार किया।

बोलो नारी बोलो,

कुछ तो मुख को खोलो।


क्यों जननी बनने की पीड़ा झेली,

जब जननी को ही मान नहीं।

क्यों पुरुष की छाया में रहती हो,

जब वह छाया ही सन्ताप बनी।


उठो नारी उठो,

तोड़ो इन शृंखलाओं को ।

अपना प्राप्य खुद लेना है,

नहीं दान में कुछ मिलना है।


अपना भाग्य स्वयं बनाओ,

क्यों तुम दान की पात्र बनी।

दान की वस्तु बनकर,

पीड़ा तो सहनी ही होगी।


खुद को दासी बनाकर,

पुरुष को तुमने ईश बनाया।

पर क्या मानव,

कभी ईश हो सकता है।


भ्रम जाल को तोड़ो नारी,

भ्रम जाल तोड़ो।

उठो, सजग बनो,

अपना भविष्य स्वयं संवारो।


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