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vikas panchal

Abstract Tragedy Action Fantasy

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vikas panchal

Abstract Tragedy Action Fantasy

क्या मैं ऐसा था

क्या मैं ऐसा था

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 क्या मैं ऐसा था


सोचता हुं कभी कभी क्या मैं ऐसा था,

मेरे भी कुछ सपने थे और बहुत सारे अपने थे,

क्या इस गुजरते वक्त ने वो सबकुछ छीन लिया जो मेरा था,

क्यों ये औरतें सोचती हैं कि, इन्होंने ही सब खोया हैं, 

क्या इस कमाने की दौड़ में, हमने क्या नहीं खोया है।

सोचता हुं कभी कभी क्या मैं ऐसा था,

मां बाप से कोसो दूर आकर ये सोचा था सपने पूरे करेंगे,

क्या यहीं वो सपने हैं जिनके लिए घर से निकले थे,

सोचा था कम कमाएंगे और सुखी रहेंगे, पर इनको वो भी मंजूर नहीं था,

और कुछ और की इस दौड़ ने खुद को ही खो दिया।

सोचता हुं कभी कभी क्या मैं ऐसा था,

अब लगा ही था कि सबकुछ हासिल हो गया पर, 

उम्मीद और सपनों ने दौड़ने की एसी आदत लगाई कि बैठना और चलाना भूल गए।

सोचा था मां बाप के सपने पूरे करेंगे जो उन्होंने हमारे लिए देखे, पर इस दुनिया की दौड़ भाग में वो भी छूट गया।

सोचता हुं कभी कभी क्या

 मैं ऐसा था,



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