क्या मैं आज़ाद हूं?
क्या मैं आज़ाद हूं?
जब अंधेरे को अनदेखा कर पाउंगी,
और निडर होकर घर जा पाउंगी,
समझ जाउंगी कि मैं आज़ाद हूं।
जब किसी के निर्णयों पर आश्रित ना होकर,
स्वयं के निर्णय स्वयं ले पाउंगी,
समझ जाउंगी कि मैं आज़ाद हूं।
जब रस्मों के नाम पर बलि ना चढ़कर,
खुद के स्वाभिमान पर विजय पाउंगी,
समझ जाउंगी कि मैं आज़ाद हूं।
जब सुबह से शाम तक के कामों से थक कर,
कुछ आंखों में संतोष का भाव पाऊंगी,
समझ जाउंगी कि मैं आज़ाद हूं।
जब अपने हुनर से खुद की पहचान बनाकर,
प्रोत्साहन के कुछ शब्द अपनों से सुन पाऊंगी,
समझ जाउंगी कि मैं आज़ाद हूं
मानती हूं कि वक्त बदल रहा है,
हर इंसान वक्त के अनुसार ढ़ल रहा है,
पर कहीं कुछ तो है जो अब भी अधूरा है,
बस इन्हीं विचारों से घिरी मैं,
कुछ जवाबों से कुछ कम आश्वस्त हूं,
और खुद से ही पुछ लेती हूं कि,
क्या मैं सचमुच आज़ाद हूं??