क्या कहें ? कि अब तो, सारे लफ्ज़, धुंधले पड गए हैं!
क्या कहें ? कि अब तो, सारे लफ्ज़, धुंधले पड गए हैं!
क्या कहें ? कि अब तो, सारे लफ्ज़, धुंधले पड गए हैं!
कुछ बचा अगर है तो बस,
इन आँखों से अश्रुओं की बरखा जो कभी रूकती नहीं,
अपने ही अपनो से, ऐसे अल्फ़ाज़ सुनके, मानो पैरों तले, ज़मीन हट गयी हैं !
क्या कहें ? कि अब तो, सारे लफ्ज़, धुंधले पड गए हैं!
क्या कहें ? कि अब जीवन का हर पन्ना, रेख्ता हुआ सा नज़र आता है,
कभी ज़िन्दगी उदासी का दरिया लगती हैं,तो कभी तिश्नगी नज़र आती है!
जो दर्द होता हैं,उसे लफ़्ज़ों में बयाँ, करना मुश्किल हो गया है,
बस इन सुरमई अँखियों, में, जो अश्रुओं का गहरा समन्दर है,
उससे पता लगता है कि, पूरा दरिया सूख जाएगा लेकिन इन सुरमयी अँखियों का पानी नहीं रुकेगा!
क्या कहें ? कि अब तो सारे लफ्ज़ धुंधले पड़ गए हैं!

