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Ravi Jha

Abstract

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Ravi Jha

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कविता

कविता

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गृहत्याग वह शब्द विहीन 

किञ्चित अंतर्व्यथा में लीन 

कदाचित अकुलाता है ऐसे जैसे 

व्याकुल हो बिन पानी के मीन।


फिर शब्दों के गहरे सागर में 

वो गोते बारंबार लगाता है 

शब्द रूपी मोती पाने पर 

वो पुलकित हर्षित हो जाता है।


चलते चलते फिर मिलने की आशा 

हर क्षण कुछ सीखने की जिज्ञासा 

कुछ शब्द नए जानने की पिपासा 

लिए भटक रहा वह प्यासा प्यासा।


कलम हाथ में और कागज़ साथ में 

भावनाओं को शब्दों में सजाता है 

विचारों को शब्दों में प्रकट कर 

वो कविता गढ़ते जाता है।


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