कविता के शब्द
कविता के शब्द
जब यह हृदय होता है स्तब्ध
तब निकलते है, कविता शब्द
जब विचार पहुंच जाते है, नभ
तब बनते एक कविता के शब्द
भीतर मन की पकड़ती नब्ज
भीतरी दुःख की मिटाती कब्ज
कविता में सच के ऐसे है, लफ्ज
झूठ के मिटा देती है, बाग सब्ज
खुशी हो या गम की आग तप्त
कविता सब बताती, भाव सप्त
मोम हो या फौलाद कोई सख्त
कविता आगे झुकते, सब तख्त
पुराने वक्त में चारण कवि भक्त
उफान देता, देश के लिये रक्त
गम हो या सुख की हो गिरफ्त
कविता सब भाव करती, व्यक्त
प्रकृति से बड़ा न कोई कवि, वत्स
इससे बनती कविता सुंदर, स्निग्ध
जिसके भाव है, चुस्त और दुरस्त
उसकी कविता भी होती, हष्ट-पुष्ट
जिसके भाव, दुःखी, खुद से पस्त
उसकी कविता होगी, अस्त-व्यस्त
जिसके भाव होंगे साखी मस्त
वो कविता भी लिखेगा, मस्त
वो कहलायेगा, यहां आशु कवि
जो लिखता है, कविता तुरन्त
वही फल देता है, यहां दरख़्त
जड़ो में जैसा नीर बहे उसवक्त
जो करते, यहां पर विचार कत्ल
न बना सकते, कविता कमबख्त
उन्हें कभी न मिलती है, शिकस्त
जिसके पास सकारात्मक शब्द
वो ही बनते है, यहां कवि फकत
जिसकी सोच करती सत्य -गश्त
जो चापलूसी का पीते है, यहां रक्त
वो प्रसिद्ध हों, पर न भरते जख्म
जो पीते है, चापलूसी का शहद,
वो कवि हो, पर नही कविता शब्द
जो मिटाये किसी का दुःख, दर्द,
वो कवि न हो, पर है, कविता, रक्त
जो दिलासा देते किसी को शब्द
वो भले न हो सुंदर और स्पष्ट
जिससे मिले किसी को प्ररेणा
वो सच मे है, असल कविता, शब्द।
