कविता हौंसलों
कविता हौंसलों
हौसलों की जंग में
कोई जीत ना सका
सपनों को साकार करने
दिल मैदान में उतर गया
मन पंछी बन उड़ने लगा
ना भूख थी ना प्यास थी
ख्वाबों के पंख पर था भरोसा
जब फलक तक उड़ान थी
बादलों की गरज संग
काली घटाओं का साया
चिलचिलाती धूप और
आंधियों का था मजमा
बेखबर हालात से
अपनी ही धुन में था उड़ा
साकार करने ख्वाब सब
दिल फलक तक उड़ता रहा
कुछ हासिल करने के लिए
दिल थाम कर जो चल दिए
ठहर न पाया कोई
हौंसलों के सामने।