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कविता और कम्पयूटर

कविता और कम्पयूटर

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आज था अवकाश का दिन,

कोई भावना घर कर गयी !

मन में कुछ विचार आया,

कविता मेरी निकल गयी !


पहले कलम निकलते थे,

कापियाँ निकाली जाती थी !

अपनी कल्पनों की डोर से,

एक तश्वीर बनाई जाती थी !


पर आज कॉपी कलम को,

छोड़ यंत्रों का सहारा लिया !

कविता की गंगा में हमने,

तो जमके गोता लगा लिया !


एकांत चिंतन लीन रहकर,

कविता मेरी निखरने लगी !

भाव भंगिमा से ओत प्रोत,

निर्मल-धरा बहने लगी !


सम्पूर्ण कविता बन गयी,

ह्रदय मेरे गद-गद हो गए !

आज सब कुछ मिल गया ,

मेरे नक्षत्र सारे खिल गए !


कॉपी करने का बटन जब,

हमने खूब सम्भलकर दबाया !

जल्दी में हम भूल कर गए,

डीलिट् ने लेखनी को हटाया !


हाय ! तौबा यह क्या हो गया ?

आकाश से गिरे खजूर पर रुके !

कल्पना के संसार से हम क्षण में

औंधे मुँह ही लड़खड़ाते गिर गए !


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