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Ashutosh Tiwari

Romance

4  

Ashutosh Tiwari

Romance

कविकर्म का मूल्य

कविकर्म का मूल्य

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"जब घायल दिल को पहलू से, तनहाई ठुकराती है !

तब उसकी आहों को दुनिया, गीत समझकर गाती है !


तुलसी बनने को निज सुख भी, भेंट चढ़ाना पड़ता है !

मीरा को त्यक्ता होने का, भार उठाना पड़ता है !

महाप्राण बनने की खातिर, खोना पड़ता बेटी को

जयशंकर को बिना दवा के, प्राण लुटाना पड़ता है !


यही फलन है उस दुनिया का, जहाँ प्यार व्यापार नहीं

मनुजमूल्य की धारा छल से जब आहत हो जाती है !

जब घायल दिल को पहलू से !


पीड़ाओं का सार समेटे, दुविधाओं के बोझ तले !

काट रहे हैं नित्य अमावस, दीप बने जो स्वयं जले !

दंश झेल, दो भरे नयन

से, पृष्ठ उकेरे मानस के

और मिला उपमान सूर्य का, जब दिनभर जल मरे ढले !


मृषा स्वरों पर दौड़ पड़े जो, मूक कहाँ वह समझेंगे

जब मन की हर मूक विवशता चिल्लाकर थक जाती है !

जब घायल दिल को पहलू से !


वह मानस जो इस समाज का, दर्पण समझा जाता है !

वह मानस जो भटके जग को, सही राह दिखलाता है !

वह मानस जो परता में भी, निजता का हल खोज रहा

स्वयं रो रहा किन्तु हर्ष का, बीजवपन कर आता है !


किन्तु कहो क्यों ? यक्ष प्रश्न है, कल था, है और होगा भी

होती पूजित शिला वही क्यों, जब वह ठोकर खाती है !

जब घायल दिल को पहलू से..।


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