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Ashutosh Tiwari

Others

4  

Ashutosh Tiwari

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पाखंड

पाखंड

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230


"लाख क्रियाएं, मृत पिता की आत्मा यह कह रही थी..

'आज तर्पण कर रहे हो छल नहीं तो और क्या है..?'


याद आते हैं वो दिन जिस दिन लिया था जन्म तुमने..

और आई दे तुम्हें मेरी भुजा में मुस्कुराई.. 

और बोली 'है हुआ बिटवा तेरा, लाखों बधाई' 

आँख में भर हर्ष के कण देख तेरा दीप्त चेहरा,

इस नयन द्वय में न जाने स्वप्न कितने तैर आए..

उंगलियां ऐसे लगी जैसे बुढ़ापे की लकुटिया 

और कंधे जो हमें गिरते हुए झट थाम लेंगे.. 

पैर, मैं जिनके सहारे धाम चारों कर सकूंगा 

हाथ, जिनसे बाद मरने के मैं सुख से तर सकूंगा..!


स्वप्न मेरे तुम रहे इसके सिवा था कौन दूजा?

इसलिए मैं मारकर हर स्वप्न तुम को पालता था,

पूर्ण करने में तुम्हें खुद की जरूरत टालता था 

तुम बढ़े, पढ़ते गए, दुर्गम्य में को भी साथ लेते, 

लक्ष्य वह जो था कठिन तुम साधना से साध लेते,

खैर! शिक्षा पूर्ण कर, करने लगे तुम अर्थ अर्जन,

हो गए तुम दूर के अच्छे नगर के श्रेष्ठ सर्जन..!

और इसके साथ ही तुम चल पड़े जीवन बसाने,

छोड़कर रिश्ते पुराने एक नया रिश्ता बसाने..! 


पर समय की क्रूरता से बच सका है कौन अब तक?

काल ने छीने हैं कितने यौवनों के स्वप्न मादक..!

इस समय के साथ ही पितु हो चला बूढ़ा तुम्हारा..

सृष्टि के अंतिम चरण में चाहकर तेरा सहारा..

किंतु तुम थे व्यस्त तुम को कब भला अवकाश मिलता..

छोड़कर अपना शहर तुम जो हमारे पास आते..

पूछते तुम हाल मेरा साथ में कुछ क्षण बिताते..!


याद है चौथे बरस माई तुम्हारी चल बसी थी? 

जानते हो उस समय कितना अकेला हो गया था?

एक वह ही थी जो सब कुछ छोड़ मेरे साथ में थी..!

किंतु मरते क्षण भी केवल नाम तेरा ले रही थी..

कह रही थी 'आ अगर जाता तो उसको देख लेती..

और तुम अंतिम समय भी देखने उसको आए..!

अर्थ क्या इतना जरूरी कि सभी को छोड़ दें हम?

एक बंधन के लिए सम्बन्ध सारे तोड़ दें हम?


खैर! मैं कहता भला क्या घाव वह भी सी गया था..!

अश्रु जितने रक्त के थे आप ही मैं पी गया था..!

माह छह के बाद में भी चल पड़ा उसकी डगर पर

और तब अवसर मिला तुम आ गए आँसू बहाने..

मातु पितु से नेह का भंडार दुनिया को दिखाने..!

और तब से हर बरस तुम श्राद्ध मेरा कर रहे हो..!

यह भला निकृष्टता का तल नहीं तो और क्या है..?"



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