कवि का धर्म
कवि का धर्म
कविता लिखना है एक कवि का धर्म,
कविता जो, सुंदर शब्दों से गढ़े हों।
जरूरी नहीं, कवि बहुत पढ़ें लिखे हों,
है यह जरूरी कि शब्द उसके सही हों।
कविता के नाम पर न करें टीका-टिप्पणी,
रखे जो सदैव मंगलकारी व प्रभावी लेखनी।
सामाजिक कुरीतियों का करें जो पर्दाफाश,
अपनी लेखनी से करें न वो किसी को उदास।
भ्रष्टाचार पर जो कर सके जम कर प्रहार,
कविता बने दीन दुखियों के लिए उपहार!
कवि सदा दे कविता में सुंदर सा एक संदेश,
जागृति फैला सके जो, पूरे समाज और देश।
लिखे ऐसी कविता वर्तमान की जिसमें गूंज हो,
भविष्य के लिए जिसमें कोई अनोखा संदेश हो
कवि, कविता से लोगों को दे सके कोई सीख,
प्रखर शब्दों से लिखे संकटनाशक एक कविता
जगा सके जो लोगों के सोए हुए संस्कारों को,
एक नई दिशा दिखाए, आने वाली पीढ़ी को।
हर रस व भाव का कविता में करके समावेश,
बचा ले डूबते हुए समाज को बने सुदृढ़ देश।