कुर्सी
कुर्सी
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कुर्सी का लालच सब है समाया हुआ,
हर एक कुर्सी के लिए दौड़ है लगाआ हुआ,
बेटा छीन रहा बाप की कुर्सी, भाई - भाई को
गिराने पर लगाई है कुर्सी से।
नेतागिरी की कुर्सी की तो बात ही ना कीजे
छीना-झपटी कर रहा हर इन्सान है।
वाह री कुर्सी तेरी क्या शान है।
तेरी खातिर चोरी, डकैती, खून - खराबा
होता है, कुर्सी के लिए तो पैसे वाला भी
ग़रीब के चरण तक भी धोता है।
कुर्सी पाने को घर- घर जा हाथ जोड़ना पड़ता
है, ग़र ना मिले इमानदारी से तो बेईमानी पे भी
उतरना पड़ता है।
कुर्सी मिले तो रिश्ते भी बढ़ते, वरना किसी को कौन
पूछे, वाह री कुर्सी तेरी माया, तु ही धूप तू ही छाया,
तुने ऐसा चक्र चलाया, अपना बन जाता पल में
चाहे हो क्यूं ना वो पराया।
जय-जय कुर्सी महामाया।