कुण्डलिया : "साँच"
कुण्डलिया : "साँच"
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झूठे लिख ना लेख ये, लिखणा हरदम साँच।
नहीं झूठ कै पाँव हो, नहीं साँच कै आँच।
नहीं साँच कै आँच, जाँच कितणी बैठालो।
रहै गर्त म्ह झूठ, टग्घी चहि खूब लगालो।
कहै 'भारती' तीर, झूठ के होज्या भूठे।
रहो साँच कै साथ, मीत ना जीतै झूठे।