कुण्डलिया : "चमचा युग"
कुण्डलिया : "चमचा युग"
चमचा युग की धूम है, कहगे कांशीराम।
छोड़ भीम की सीख को, करते काम तमाम।
करते काम तमाम, दांव पर धर मर्यादा।
भरते अपना पेट, भूल जनता का वादा।
कहे 'भारती' खेल, अनोखा ये खूब रचा।
सच्चा है बेहाल, मौज में रहता चमचा।
