कुछ यूँ
कुछ यूँ
हमने आपको हर बार कुछ यूँ लिखा है
कि अब तो लिखावट थक गयी,
फिर दिल से एक आवाज़ सी आयी कि
ज़नाब अभी हमनें उन्हें पूरा कहाँ लिखा है।
कभी आपका बेइंतहा प्यार लिखा है
कभी एक अनजाना इकरार लिखा है
कभी वो अनचाहा इनकार लिखा है
तो कभी मनचाहा तकरार लिखा है।
कभी खुद की आवाज़ लिखा है
कभी आपके दिल की पुकार लिखा है,
कभी मुरली की तान लिखा है
तो कभी आपको हमारी जान लिखा है।
कभी सुरीली गीतों की राग लिखा है
तो कभी निश्छल अनुराग लिखा है,
कभी आपको एक एहसास लिखा है
तो कभी आपके साथ की आस लिखा है।
कभी आपको चमकता सबनम लिखा है
कभी आपको दर्द का मरहम लिखा है
कभी शीत की अलबेली फुहार लिखा है
तो कभी चाँद का खूबसूरत दीदार लिखा है।
कभी खिलखिलाता संसार लिखा है
कभी बसंत की हँसती बहार लिखा है
कभी पाजेब की झनकार लिखा है
तो कभी शायरों में गुलज़ार लिखा है
कभी इन होंठो की मुस्कान लिखा है
कभी नैनों की मीठी ज़ुबान लिखा है
कभी भीड़ में तुमसे अनजान लिखा है
कभी सितारों से भरी कायनात लिखा है
हमने आपको हर बार कुछ यूँ लिखा है
कि अब तो लिखावटे थक गयी,
फिर दिल से एक आवाज़ सी आयी कि
ज़नाब अभी हमने उन्हें पूरा कहाँ लिखा है।
