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Roli Abhilasha

Abstract

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Roli Abhilasha

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कुछ तो हुआ है

कुछ तो हुआ है

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अपने हाथों को यूं बार-बार निहारा उसने

जैसे कुछ अनछुआ सा छूकर आए हों

पास बैठने से इंकार कर जाना

मुझे झकझोर गया भीतर तक।


क्या हुआ, मन से आवाज आ गई थी

कमरे से बाहर दालान के पाए से लिपट जाना

जार-जार रोना, मैं भीतर की उथल पुथल से घबराई

कुछ तो था जो दर्द में दिख रहा था।


छटपटाता मन उसका बेहद असंयत था

"मां तेरा बेटा होने का फ़र्ज़ न निभा सका

अपनी बहन सी दोस्त को उन दरिंदों से न बचा सका

देख मेरे हाथ उन चेहरों की कालिख से पुते हैं।


मैं दरिंदा नहीं पर इंसान भी रह पाया

जीते जी उठ गया मेरे सर से इंसानियत का साया"

मेरा दर्द बेहिसाब हो चला था

दर्द में डूबा बेदर्द अस्बाबा हो चला था।


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