कुछ तो हैं।
कुछ तो हैं।
वो गुप्त राज !
जो मुझे बता नहीं सकती
जो तुम्हारे मन में चल रहा हैं।
मेरे प्यार के प्रति नहीं..
किसी ओर के प्रति!
क्या झूठा हैं मेरा प्यार..
जो तुम बता नहीं सकती
ना कुछ कह सकती
कैसा प्यार तुम्हारा,
अच्छा हैं मुझे तन्हा रहना !
मगर बेवफा से प्यार नहीं..
क्यों छुपा रही हो राज
अपने ही दिल के..
पता होता अगर,
नहीं करते तुमसे प्यार..
इस तरह रोकर..
जो मुझे बताती नहीं !
कभी- कभी मन हुआ तो,
आती हो सपने में और सताती हो
मगर ये क्यूं छुपा रही हो
कोई अमानत हैं क्या ?
किसी का..
जो मैं दे नहीं पाए !
उसको तुम अच्छी तरह,
छुपा रही हो !
कुछ तो तुम्हारे मन में,
मुझे क्या पता !
संयोग ही कुछ ऐसा था,
जो तुमसे प्यार करके,
मैं भी हो गए बेवफा..!