कुछ कहने भी तो दो
कुछ कहने भी तो दो
कब तक रुलाओगे हमें,
कभी हँसने भी तो दो !
व्यथा हम किस से कहें,
कुछ कहने भी तो दो !!
झूठा वादा झूठी नीति,
झूठे सपने दिखलाकर !
मृगतृष्णा के मायाजाल,
रख डाला है भरमाकर !!
कब तक मौन रहेंगे यूँ,
कभी कहने भी तो दो !
कब तक रुलाओगे हमें,
कभी हँसने भी तो दो !!
नौकरियाँ भी छूट गयीं,
घर से बेघर होने लगे !
लोगों को हमने खोया,
कोहराम मचने लगे !!
कब तक मिलेंगे अपने,
कोई सुराग भी तो दो !
व्यथा हम किस से कहें,
कुछ कहने भी तो दो !!
शिकायत सुनने वाला,
किसी की नहीं सुनता !
उलट कर राष्ट्रद्रोह के,
अभियोग में ही फँसता !!
कब तक फँसाओगे हमें,
आज़ाद होने भी तो दो !
व्यथा हम किस से कहें,
कुछ कहने भी तो दो !!
जो वादा करके आए,
उसको निभाना चाहिए !
इतिहास के पन्नों में,
पहचान बनाना चाहिए !!
जनहित में कुछ करके,
नाम कमाने भी तो दो !
व्यथा हम किस से कहें,
कुछ कहने भी तो दो !!