कुछ ख़ास
कुछ ख़ास
कुछ ख़ास मैं लिखना चाहती हूँ
एक आस मैं लिखना चाहती हूँ
जो कभी किसी से न बोला
वो राज मैं लिखना चाहती हूं
दिल की कड़वाहट को लिख दूं
या चाय की राहत को लिख दूं
जो सबको अपनी बात लगे
वो बात मैं लिखना चाहती हूं
सूनी सी रात का शोर लिखूं
या कलरव वाला भोर लिखूं
अब तक जो भी है गुजर गए
लम्हात मैं लिखना चाहती हूं
अब मैं मंज़िल की राह लिखूं
या क्या है मेरी चाह लिखूं
जो बोल सकी न डर से वो
जज़्बात मैं लिखना चाहती हूं
कागज और स्याही को लिख दूं
या भटके राही को लिख दूं
सारी चिंता जो दूर करे
वो राग मैं लिखना चाहती हूं
एक स्नेह भरा स्पर्श लिखूं
या जीवन का निष्कर्ष लिखूं
इस अस्त व्यस्त से जीवन में
रविवार मैं लिखना चाहती हूं
डेहरी पर आहट को लिख दूं
या सूर्य की गरमाहट लिख दूं
जिसमें परवाह हो मईया सी
वो प्यार मैं लिखना चाहती हूं
मैं कोई एक ख्याल लिखूं
या मन का सारा बवाल लिखूं
मेरी कलम भी अब तो पूछ रही
क्या आज मैं लिखना हूं
कुछ ख़ास मैं लिखना चाहती हूं
एक आस मैं लिखना चाहती हूं।
