वीर सुत
वीर सुत
भूतल पर था वह पड़ा हुआ
मस्तक से बहती रक्त धार
भारत मां ने आह्वान किया
उठ खड़ा हुआ फिर वीर लाल
हाथों में शक्ति समेटी फिर
फिर बांध तिरंगा मस्तक पर
चढ़ गया दुश्मनों पर फिर से
ले हाथ विजय की वह मशाल
यह वीर लाल यह वीर पुत्र
यह वीर किसान का बेटा है
जिसने मां की रक्षा खातिर
कण-कण शक्ति को समेटा है
क्या है अब दुश्मन में हिम्मत
अब इसको जो ललकारेगा
जो हिम्मत भी न हारा है
वह दुश्मन से क्या हारेगा
ये अम्बर, सागर और पर्वत
इन सबकी जितनी क्षमता है
मेरे पुत्र के बाहुबल की भी
बस इन सबसे ही समता है
उस वीर की शौर्य कथाओं का
और क्या ही अब मैं बखान करूं
जिससे सब जग ही परिचित है
मैं क्या उसके गुणगान करूं
क्या क्या बलिदान दिए अब तक
हर वीर कथा मैं पढ़ती हूं
मां भारत के ए वीर सुतो
शत कोटि नमन मैं करती हूं।
