कुछ काम करो-कुछ काम करो
कुछ काम करो-कुछ काम करो
कुछ काम करो-कुछ काम करो, हिन्दी में सारे काम करो।
शिक्षित बन इठलाते हो, कोट-पतलून में इतराते हो।
हिन्दी दिवस मनाते हो,दो घण्टे में हीं हिन्दी का रक्त बहाते - हिन्दी को रुलाते हो।
विदेशियों को पलायन हेतु जिसने अपना तन-मन झुलसाया,उसको नीच बनाते हो।
यदि हिन्दी न होती तो आज भी उत्तर से दक्षिण और पश्चिम से पूरब कभी न जुड़ पाता,
तिरंगे का निर्माण न होता, परतंत्रता का अवसान न होता, हिन्दी जागी-राष्ट्रीयता जागी।
हिन्दी के महत्व को जानो, इसके सहजता-सरलता को जानो।
हिन्दी के बाजार को देखो, आर्थिक विश्व-बाजार को समझो।
कुछ काम करो-कुछ काम करो, हिन्दी में सारे काम करो……..
इसके उस इतिहास को देखो,यह नयी कोई भाषा नहीं है।
जनसाधारण की जिह्वा थी, जिसने राजा दाहिर को जगाया था।
आक्रमणकारी मामुद को रोकने दो पुत्रियां सह स्वयं की बलि चढ़ाई थी।
परन्तु देश का दुर्भाग्य है जो करें राष्ट्रीयता का प्रयास, उसे सदैव धूल-धूसरित की जाती है।
राजनीति के छल प्रपंच के आकर्षण में क्षेत्रीय भाषाओं के कंधे पर हिन्दी के ऊपर हीं उंगलियां उठाई जाती है, ताकि राष्ट्रीयता चुपचाप रहे और भाषाई भेद-भाव को जगाई जाती है।
तभी तो आज आवश्यकता आन पड़ी है, सभी विषमताओं को मिटाने हिन्दी में सारे काम करो।
कुछ काम करो-कुछ काम करो, हिन्दी में सारे काम करो।
जब-जब लाल किले के प्राचीर से हिन्दी में संदेश सुनाई जाती है,
पूरे भारत में साहस और आत्मविश्वास की लहर जन-गण में भर जाती है।
