कुछ और
कुछ और
यह जो जख्म मिले हैं सौगात में
इनकी लज्जत है कुछ और
छावं मे बैठने के बाद
धूप सेंकने का मजा है कुछ और
दर्द ने जो डाला इस ओर डेरा
इसकी खुमारी है कुछ और
जिन्दगी का लिबास छोड दिया
आज पहना है असली जामा कुछ और
बद्दुआएँ भी चलती है सियासत मे
फलक से आते है फैसले कुछ और
नफरमानी तो हमने की नहीं
उसने फरमायी सजा कुछ और
खुद को जलाया घर बचाने के लिए
वह समझ बैठे बात है कुछ और
जिन्दगी से सीख लो हुनर कुछ जीने का
उखड़ती हुई सांसें दे रही हैं पैगाम कुछ और।