गली के गोशे पर
गली के गोशे पर
क्या करूँ दूर रहना बड़ा मुश्किल नजर आता है,
बच्चे की सी जिद है, आंखों में चांद उतर आता है।
इश्क गली के गोशे पर खड़े है हम सनम के लिए,
ना मुझे उधर बुलाता है, न खुद इधर आता है।
तेरे अक्स से सपनो को मैंने भर लिया।
काफिर हूँ ना, आज कैसे मेरा जिक्र कर लिया।
हुजूर की खिदमत में गुजरती तो भी क्या होता,
इकरार से तो तू इस बार भी मुकर लिया।
अर्श सा गुरुर, आगे दुनिया बौनी है।
प्यार की चटाई पर नफरत की धूनी है।
दर्द की धुंध साफ हुई तब पूछा था हाल,
इतनी बेफिक्री किसी अपने के लिए कभी सुनी है।
प्यार मुझको हुआ है इसलिए जुल्मी सताता है,
वरना हर कोई जानने वाला मुझे बड़ा कट्टर बताता है।
तुझे आईने में देखकर लगता है मैं पागल तो नहीं,
फिर लगता है प्यार के सिवा नाचीज़ को क्या आता है।
खैर ये जनम तो खराब कर लिया मैंने, जाने दो,
अगले में देखता हूं तू फिर कैसे मुझे फंसाता है।