सफ़र-ऐ-हयात
सफ़र-ऐ-हयात
क़ायनात के, तमाम तानों से, आज़ार हो कर,
निकले हैं सफ़र-ऐ-हयात पर, तैयार हो कर !
रहबर की तलाश भी है, मुझ को सफ़र में कि,
मंज़िल की तलाश कर रहा, बे-क़रार हो कर !
हर मौज़ साहिल की तलाश में है सफ़र करती,
"क़ैस" सू-ऐ-साहिल, मौज़ पे सवार हो कर !
ज़माने की दौड़ देख रहा हूँ में जो है बेतहाशा,
जहाँ का दम फूलता देखा, दरकिनार हो कर !
ईमान-वालों को जहान ने, बीमार ही है समझा,
मैं भी परेशान हूँ देखिये, इस से बीमार हो कर !
तुम कितने भी सितम करो मुझपे ज़मानेवालों,
मैं लौटूँगा प्यार बन के और बे-शुमार हो कर !