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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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सर्द हवाओं का झोंका

सर्द हवाओं का झोंका

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शूल सा चुभता

कलेजे तक को कँपा जाता

साधनहीन सुविधाविहीन कमजोरों

गरीब, निराश्रित असहयों के लिए

किसी कहर से कम नहीं हुए होता,

जब आता है सर्द हवाओं का झोंका

किसी कट्टर ,बेदर्द दुश्मन सरीखा।


बेचैन कर देता है, डराता है

जीवन खतरे में डाल देता है

मौत सा डर दिखाता है

जीवन की आस टूटती सी लगती है

सर्द हवाओं की एक टुकड़ी भी

गहरी खाई से कम नहीं लगती है।


यह अलग बात है कि ये सर्द झोंके

किसी से भेदभाव नहीं करते,

पर ये भी सही है कि जाने कितनों को

सूकून से जीने भी नहीं देते

यही नहीं बहुतों का जीवन भी

ये सर्द झोंके असमय ही छीन लेते,

हर किसी के जीवन में 

उथल पुथल मचा देते।


जब भी आते ये सर्द हवाओं के झोंके

जीवन में उथल पुथल ही मचाते

तिगनी का नाच ही हमें नचाते।


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