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Hardik Mahajan Hardik

Abstract

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Hardik Mahajan Hardik

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अनदेखा करते हो

अनदेखा करते हो

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क्यूँ जीवन को तुम अनदेखा करते हो,

वक़्त को हर पल पराजित करते हो,

होते हो ऐसे गुल जैसे कोई विपदा आती हो,

अपने अंदर के पराकाष्ठ को तुम न्यौछावर करते हो,


क़िस्मत में जो लिखा वो तुमको खींचता हो,

यादों के हर लम्हें तुमसे ही सबकुछ मिलें हो,

खोली खिड़की एक सुबह की यादें उसमें मिली हो,

जब जब आते खिड़की पर हम तब तब दूर होते हो,


बार बार का कैसा असर तुम अंधा कर जाते हो,

किनारे कश्ती पर तुम फ़रियाद हमारी करते हो,

अँधेरो में छिप छिप कर तुम याद हमें करते हो,

बिन मांगे वक़्त से तुम वक़्त हमारा चुराते हो,


कटोरी की चाय भी तुम बिन फ़ीकी पड़ जाती हो,

सूरज की किरणों से बार बार पूछ लेते हो,

तेज़ गर्म हवाएँ घोर तृप्त हो जाती हो,

अधूरी जानी मानी तेरी बातों में बातें सारी हो।।


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