कस्तूरी
कस्तूरी
हम खोजते ही रहते
कस्तूरी मृगतृष्णा सी
बचपन की उम्मीदों पर
छूटता जाता है बचपना।
युवावास्था में प्रतिस्पर्द्धा
कुसुम किसलय पराग
कई दौड़ में शामिल सा
अंतहीन भटकन वाला।
वैवाहिक ज़िम्मेदारी
माता-पिता, सामाजिक
प्रतिष्ठा के साथ पिसता
मानव ख़ोज में कस्तूरी के।
काल का विभीषण
बता पाता कस्तूरी
नाभि में हैं मृग के
बोध होने से पहले,
प्राण पखेरू उड़ जाते हैं
रह जाती है केवल
कस्तूरी की मृगतृष्णा।
