कृष्णावतार
कृष्णावतार


हे केशव ! तेरी धरती पर,
मर्यादा तुझको रही पुकार,
क्यों नहीं सुनाई देती अब,
तुझे करुणा भरी वही चीत्कार,
क्या द्रुपद कुमारी ही केवल,
तेरी रक्षा की अधिकारी थी ?
क्या तेरी वह सारी लीलाएं,
बस दुःशासन पर भारी थीं ?
अब इस युग में लगता है जैसे,
दुःशासन ने है लिया अवतार,
हर पग पर वह बैठा है ऐसे,
धरती पर हो उसका अधिकार,
मात-पिता का है यह धर्म,
दे पुत्रों को समुचित संस्कार,
वह दुःशासन बन कर ना उभरें,
हर घर में हो कृष्णावतार
हर घर में हो कृष्णावतार।