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Sandeep kumar Tiwari

Abstract

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Sandeep kumar Tiwari

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क्रोना

क्रोना

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किस बात का रोना है

ये तो अभी क्रोना है 

दुर्भाग्य न सब दिन सोता है 

अब देखो आगे क्या होता है

स्वच्छता को वनवास है 

ये नयी सदी का विकास है 

धर्म धारासाई है,पाप की सुनवाई है 

स्वार्थ वशीभूत है, नेता रामदूत है

एक दिन सबको होना है 

तो किस बात का रोना है  


स्वाद और हवस में व्यर्थ समय गंवाते हैं 

कुतों का भोजन इंसान भी अब खाते हैं 

अहिंसा परम धर्म है; पर कर्म सब कुकर्म है 

बेईमानों कि बस्ती में हकीकत महज़ मर्म है

हम जो कियें वही मिल रहा है 

कांट बोएं कांट खिल रहा है 

जो दिएँ वहीं संजोना है 

तो किस बात का रोना है


कौन कहता है ये संताप है

सब अपना हीं प्रेम प्रताप है 

जो बेजुबां जानवरों पे अत्याचार है 

अब तो शायद ये उन्हीं का प्यार है

छुरी से गला रेतना है 

साबुन से हांथ धोना है 

किस बात का रोना है 

ये तो अभी क्रोना है



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