कर्म और उसका फल
कर्म और उसका फल
कर्म किए जाओ पर फल की चिंता मत करो,
पर जहां फल होता है वहीं कर्म होता है,
वो अच्छा या बुरा कैसा भी हो सकता है,
पर ये भी याद रखना,
यदि फल की इच्छा नहीं होगी या फल ही नहीं होगा,
तो कर्म करने की इच्छा भी नहीं होगी,
और कर्म भी नहीं होगा,
इसलिए पहली पंक्ति को इस तरह याद रखो की -
"कर्म किए जाओ फल को ध्यान में रखकर,
पर उसका फल किस तरह का होगा उसकी चिंता मत करो।"
