जब भी चाँद को देखा
जब भी चाँद को देखा
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जब भी चाँद को देखा,
हमेशा चाँद अपना सा लगा,
हमेशा साथ चलने वाला सा लगा,
पूरी रात यही सिलसिला चला,
पर जैसे जैसे सुबह होने को आई,
वो बादलों में छुपकर चुप चाप चलता बना।
जब भी चाँद को देखा,
हमेशा चाँद अपना सा लगा,
हमेशा साथ चलने वाला सा लगा,
पूरी रात यही सिलसिला चला,
पर जैसे जैसे सुबह होने को आई,
वो बादलों में छुपकर चुप चाप चलता बना।