कर देना माफ़ तुम मुझे...
कर देना माफ़ तुम मुझे...
पड़ा छोड़ देना मुझे सूखा हुआ
गुलाब समझ कर
मत खोलना तुम डायरी को, पुरानी
किताब समझ कर,
हो ही जाती हैं ज़िन्दगी के पन्नों पर,
ग़लतियाँ अक्सर
मिटा देना तुम मुझे एक गलत
हिसाब समझ कर,
हो जाऊँ मैं खड़ा ज़हन में, जब भी
बन करके सवाल
दे देना तुम उसे, मेरी बेवफ़ाई को
जवाब समझ कर,
बहा देना उन, अश्कों को, आएँ जो,
कभी मेरी याद में
मत पी जाना तुम उन्हें कोई पुरानी
शराब समझ कर,
खड़ा मिलेगा नया सवेरा, जब नींद
खुलेगी तुम्हारी
भूल जाना तब, तुम मुझे कोई बुरा
ख़्वाब समझ कर,
ग़लतियों का पुतला हूँ के आख़िर
मैं, इंसान ही तो हूँ
कर देना माफ़ तुम मुझे, आदमी कोई
खराब समझ कर ।