कोरा जीवन
कोरा जीवन
कोरा कागज सा ही था जीवन
बिल्कुल श्वेत, बेदाग सा जीवन
किसी कोने में दाग का निशाँ नहीं
चमकता था मुस्कुराता जीवन
क्यूँ लिख दिए इस पर लालच
क्यूँ छाप दिए इसके मूल्य भी
कीमत नहीं थी जब कोई हमारी
ठहाके लगा कर हँसता था जीवन
कोई चोरी बेईमानी लिख दिया
कोई निज हैवानी लिख दिया
गलती से गर कहीं सच लिखा
लोगों ने मेरी नादानी लिख दी
कोई मरोड़ कर सड़क पर फैंका
किसी ने दिल से उठाकर के देखा
किसी कोने में लिखा प्रेम था जीवन
किसी को लगा अटपटा सा जीवन
कोरा ही था सब को प्यारा बहुत
सबकी नजरों का दुलारा बहुत
सहलाते थे सब लिखने से पहले
अब तो हूँ ठोकर का मारा बहुत
क्यूँ लोगों ने लिख दिया मुझ पर
तरस न आई तनिक न मुझ पर
तबाह कर दिए जिसने जब चाहा
पढ़ा ही दिए कुछ लिख मुझ पर।
