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कोख से

कोख से

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माँ सुनी मैने एक कहानी !

सच्ची है याँ झूठी मनगढ़ंत कहानी ?


बेटी का जन्म घर मे मायूसी लाता,

खुशियों का पल मातम बन जाता,

बधाई का एक न स्वर लहराता,

ढ़ोल मंजीरे पर न कोई सुर सजाता ! माँ


न बंटते लड्डू, खील, मिठाई, बताशे,

न पकते मालपुए, खीर, पंराठे,

न चौखट पर होते कोई खेल तमाशे,

न ही अंगने में कोई ठुमक नाचते। माँ


न दान गरीबों को मिल पाता,

न भूखों को कोई अन्न खिलाता,

न मंदिर कोई प्रसाद बांटता,

न ईश को कोई मन्नत चढ़ाता ! माँ


माँ को कोसा बेटी के लिए जाता,

तानों से जीना मुश्किल हो जाता,

बेटी की मौत का प्रयत्न भी होता,

गला घोंटकर यां जिंदा दफ़ना दिया जाता ! माँ


दुर्भाग्य से यदि फ़िर भी बच जाए,

ताउम्र बस सेवा धर्म निभाए,

चूल्हा, चौंका, बर्तन ही संभाले जाए,

जीवन का कोई सुख भोग न पाए ! माँ


पिता से हर पल सहमी रहती,

भाईयों की जरूरत पूरी करती,

घर का हर कोना संवारती,

अपने लिए एक पल न पाती ! माँ


भाई, बहन का अंतर उसे सालता,

हर वस्तु पर अधिकार भाई जमाता,

माँ, बाप का प्यार सिर्फ़ भाई पाता,

उसके हिस्से घर का पूरा काम ही आता ! माँ


किताबें, कपड़े, भोजन, खिलौने,

सब भाई की चाहत के नमूने,

माँ भी खिलाती पुत्र को प्रथम निवाला,

उसके हिस्से आता केवल बचा निवाला ! माँ


बेटी को मिलते केवल ब्याख्यान,

बलिदान करने की प्रेरणा, लाभ, गुणगान,

आहत होते हर पल उसके अरमान,

बेटी को दुत्कार, मिले बेटे को मान ! माँ


शिक्षा का अधिकार पुत्र को हो,

बेटी तो केवल पराया धन हो,

इस बेटी पर फ़िर खर्चा क्यों हो ?

पढ़ाने की दरकार भला क्यों हो ? माँ


आज विज्ञान ने आसान किया है,

अल्ट्रा-सोनोग्राफ़ी यंत्र दिया है,

बेटी से छुट्कारा आसान किया है,

कोख में ही भ्रूण हत्या सरल किया है ! माँ


माँ तू भी कभी बेटी होगी,

इन हालातों से गुजरी होगी,

आज इसीलिए आयी क्या टेस्ट कराने ?

मुझको इन हालातों से बचाने ! माँ


माँ यदि सच है थोड़ी भी यह कहानी,

पूर्व, बने मेरा जीवन भी एक कहानी,

देती हूँ आवाज कोख से, करो खत्म कहानी,

करो समाप्त मुझे, न दो मुझे जिंदगानी।

करो समाप्त मुझे, न दो मुझे जिंदगानी।

करो समाप्त मुझे, न दो मुझे जिंदगानी।


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