कोई मोल नहीं
कोई मोल नहीं
ग़म के सागर में
डूब जाता जब अंतर्मन
तब सांसारिक सुखों का
कोई मोल नहीं ।
धोखा ही धोखा खाकर
जब सम्हाला हो मन
तब अनजाने का हाथ थामने का
कोई मोल नहीं ।
पुरानी दोस्ती को
जब षडयंत्रों से खोला जाए
तब साथ बिताए पलों का
कोई मोल नहीं ।
जब सामने तुम्हारे
किसी की निंदा की जाए
तब तुम्हारी प्रशंसा का
कोई मोल नहीं ।
