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Shital Yadav

Abstract

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Shital Yadav

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कंजूस दोस्त

कंजूस दोस्त

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मती गई थी मारी जिस घड़ी में ये दोस्त बनाया 

कम ख़र्च के चक्कर में करता जेब का सफाया


हद कर दी महाशय ने जब जन्मदिन था मनाया 

खाया मुफ़्त में पेटूराम बन बिल मुझसे भरवाया 


खाली करता जेबें मेरी बचतपाठ सबको पढ़ाता 

दोस्ताने की चाहत में इस आफ़त को हूँ निभाता 


फूटी मेरी क़िस्मत में नमूना ये आया मक्खीचूस 

रामभरोसे ख़ूब फलता-फूलता मेरा दोस्त कंजूस!

  


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