कल्पना
कल्पना
वो दृश्य कितना मनोरम था,
सचमुच वहां जाने को मन बेचैन था,
शांत सागर निर्मल पवन का झौंका,
पक्षियों के चहचहाहटो भरा आसमां,
जैसे ही हाथ बढ़ाया वैसे ही स्वपन टूटा,
गिर पड़ी जमीन पर और देखा तो वो स्वप्न था,
कोरा काल्पनिक दृष्य,
कल्पनाएं फिल्म की भांति होती है,
जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता,
बस दर्शकों का मनोरंजन करती है,
उसी प्रकार कल्पनाएं मन को संतुष्ट करती है।